अप्रतिम कविताएँ
नित्या
सुनो नित्या!
मत भूलो कि
केवल भूमिजा नहीं
यज्ञसेना भी हो तुम

सुलग रही होगी
अब भी
भीतर कहीं
अंजुरि भर अग्नि
आई थी जो
संग तुम्हारे
अंग तुम्हारे

प्रज्वलित करो उसे!

नहीं हुआ है जन्म तुम्हारा
कि करो आत्मसात
सारा दुराचार
कि समा जाओ मातृ अंक में
सुन कोई आरोप निराधार

जानो!
कि लाया गया
कि बुलाया गया
तुम्हें,
मिटाने को
अनवरत बढ़ता
अनाचार,
बार बार
- सुदर्शन शर्मा
Sudarshan Sharma
Email: [email protected]
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 नित्या
 लड़कियाँ
इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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