अप्रतिम कविताएँ

मनमीत
जब कहीं
अनजान रजनी को
ढुलकती साँझ ने
काला,
सितारों से दमकता,
शाल पश्मीना
कभी ओढ़ा दिया --
याद कितने गीत आए।
बिछड़े हुए,
कब से न जाने
मीत आए।
सच कहूँ?
इक पल ना बीता;
तुम्हारी क़सम,
तुम बहुत याद आए।

जब कहीं,
बहकी हवाओं ने
सुकोमल हाथ से,
लजती उषा को
बाज़ुओं में थाम कर,
घूंघट ज़रा सरका दिया
थरथराते ओंठ पर
स्पर्श तेरे याद आए।
गले में दो बाज़ुओं के हार की
उस याद में
ज़िंदगी की हर कसकती हार को
हम भूल आए।
- जोगेंद्र सिंह
विषय:
बीता समय (17)

काव्यालय को प्राप्त: 15 Aug 2019. काव्यालय पर प्रकाशित: 28 Feb 2020

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
जोगेंद्र सिंह
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 कुहुकनि
 मनमीत
इस महीने :
'सबसे ताक़तवर'
आशीष क़ुरैशी ‘माहिद’


जब आप कुछ नहीं कर सकते
तो कर सकते हैं वो
जो सबसे ताक़तवर है

तूफ़ान का धागा
दरिया का तिनका
दूर पहाड़ पर जलता दिया

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'हादसे के बाद की दीपावली'
गीता दूबे


रौशनी से नहाए इस शहर में
खुशियों की लड़ियाँ जगमगाती हैं
चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।

धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website