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'केसव' चौंकति सी चितवै
'केसव' चौंकति सी चितवै, छिति पाँ धरके तरकै तकि छाँहि।
बूझिये और कहै मुख और, सु और की और भई छिन माहिं॥
डीठी लगी किधौं बाई लगी, मन भूलि पर्यो कै कर्यो कछु काहीं।
घूँघट की, घट की, पट की, हरि आजु कछु सुधि राधिकै नाहीं॥
- केशवदास
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भाग 6 लय में लय तोड़ना
वाणी मुरारका
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर
वाणी मुरारका
इस महीने :
'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन
आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।
जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 4 कई गीत और कविताएँ (16 मात्रा)
वाणी मुरारका
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 3 खास विषयों पर लिखना
वाणी मुरारका
इस महीने :
'कौन तुम'
डा. महेन्द्र भटनागर
कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!
लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
दे दिया संसार सोने का सहज
जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!
वीथियाँ सूने हृदय की ..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 2 मूल तरकीब
वाणी मुरारका
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