रौशनी से नहाए इस शहर में
खुशियों की लड़ियाँ जगमगाती हैं
चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।
धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुर्झाए होठों पर
मुस्कानों की लड़ियाँ जगमगाती हैं
जिंदगी आज फिर मुस्कराती है।
आज फिर से निकल पड़े हैं लोग
दिलों में दफ्न कर अँधेरे को
हाथों में आज फिर से दियासलाई है
है बातियाँ भी भींगी हुई तेल म़े
दीये माटी के हों या चाँदी के
लौ रौशनी की झिलमिलाती है,
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।
एक दीप से जलते हैं हजारों दीप
एक फूल से महकती बगिया सारी।
हौसलों के चप्पुओं को थाम
नाव जीवन की तिरती जाती है
उबर कर हादसों के साये से "गीत"
लौ उम्मीदों की झिलमिलाती है
जिंदगी आज फिर मुस्कराती है।
काव्यालय को प्राप्त: 29 Nov 2023.
काव्यालय पर प्रकाशित: 24 Oct 2025