अप्रतिम कविताएँ
छ्न्द प्रसंग नहीं हैं
हम जीवन के महाकाव्य हैं
केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं।
         कंकड़-पत्थर की धरती है
         अपने तो पाँवों के नीचे
         हम कब कहते बन्धु! बिछाओ
         स्वागत में मखमली गलीचे
रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग-तरंग नहीं है।
         तुमको रास नहीं आ पायी
         क्यों अजातशत्रुता हमारी
         छिप-छिपकर जो करते रहते
         शीतयुद्ध की तुम तैयारी
हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं हैं।
         कहते-कहते हमें मसीहा
         तुम लटका देते सलीब पर
         हंसें तुम्हारी कूटनीति पर
         कुढ़ें या कि अपने नसीब पर
भीतर-भीतर से जो पोले
हम वे ढोल-मृदंग नहीं है।
         तुम सामुहिक बहिष्कार की
         मित्र! भले योजना बनाओ
         जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है
         नाम हमारा, उसे मिटाओ
जिसकी डोर हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं है।
- देवेन्द्र शर्मा इन्द्र
Poet's Address: 10/61, Sector-III, Rajendranagar,
Sahibabad-Ghaziabad, U.P.-201005

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इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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