अप्रतिम कविताएँ
चल पथिक तू हौले से
टहल रहा गर भोर से पहले
पग तू रखना धीरे से
जगे हुए हैं जीव-जंतु
मानव तुमसे पहले से

खरगोश, कीट और खग निकले
नीड़, बिल, कुंड से खुल के
चंचल अबोध छौने संग
चली हिरन निर्भयता  से

दिन भर रहते सिकुड़ समेटे
वनस्पति में रुल छिपके
निर्भीक निडर और मस्त रहे वो
केवल ब्रह्म-मुहूरत  में

होगा खाद्य श्रृंखला के
प्रथम पग पर तू जग के
व्याध का खेल रचा यहाँ पर
सुन्दर सूक्ष्म-संतुलन से

कोमल कोंपल मृदुल पत्ते
गीली घास धुले नम से
चन्द्रमा और सूर्य किरण संग
रचा भव्य रूपक नभ में

दर्शन करना गर तू चाहे
ऐसे स्वप्निल मन्ज़र के
सांस भी आये मद्धम तेरी
पग तू रखना धीरे से
- प्रिया एन. अइयर
व्याध : शिकारी
विषय:
प्रकृति (41)

काव्यालय को प्राप्त: 5 Jul 2017. काव्यालय पर प्रकाशित: 8 Jan 2021

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
प्रिया एन. अइयर
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 अधूरी
 चल पथिक तू हौले से
 वो चुप्पी
इस महीने :
'365 सिक्के'
पारुल 'पंखुरी'


तीन सौ पैंसठ
सिक्के थे गुल्लक में
कुछ से मुस्कुराहटें खरीदीं
कुछ से दर्द,
कुछ से राहतें,
कुछ खर्चे ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'चाँद के साथ-साथ'
चेतन कश्यप


पेड़ों के झुरमुट से
झाँकता
चाँद पूनम का
बिल्डिंगों की ओट में
चलता है साथ-साथ
भर रास्ते

पहुँचा के घर
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'सबसे ताक़तवर'
आशीष क़ुरैशी ‘माहिद’


जब आप कुछ नहीं कर सकते
तो कर सकते हैं वो
जो सबसे ताक़तवर है

तूफ़ान का धागा
दरिया का तिनका
दूर पहाड़ पर जलता दिया

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website