अप्रतिम कविताएँ
अधूरी
हर घर में दबी आवाज़ होती है
एक अनसुनी सी
रात में खनखती चूड़ियों की
इक सिसकी सी
बजते बर्तनों के शोर में टूटे
एक ख्वाब की
सभी की सुनती हुई कहानी
एक अनकही सी
हर जिद्द को पूरी करती हुई खुद
एक अधूरी सी
- प्रिया एन. अइयर
विषय:
अत्याचार आतंक (5)

काव्यालय को प्राप्त: 6 Jan 2020. काव्यालय पर प्रकाशित: 29 Apr 2022

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भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

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पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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कल मानसून की पहली बरसात हुई
और आज यह दरवाज़ा
ख़ुशी से फूल गया है

खिड़की दरवाज़े महज़ लकड़ी नहीं
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टहनियों पर ...
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पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'छाता '
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जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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