अप्रतिम कविताएँ
आत्म-समर्पण
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
यह न मुझसे पूछना, मैं किस दिशा से आ रहा हूँ,
है कहाँ वह चरणरेखा, जो कि धोने जा रहा हूँ,
         पत्थरों की चोट जब उर पर लगे,
         एक ही "कलकल" कहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
मार्ग में तुमको मिलेंगे वात के प्रतिकूल झोंके,
दृढ़ शिला के खण्ड होंगे दानवों से राह रोके,
         यदि प्रपातों के भयानक तुमुल में,
         भूल कर भी भय न हो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
हो रहीं धूमिल दिशाएँ, नींद जैसे जागती है,
बादलों की राशि मानो मुँह बनाकर भागती है,
         इस बदलती प्रकृति के प्रतिबिम्ब को,
         मुस्कुराकर यदि सहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
मार्ग से परिचय नहीं है, किन्तु परिचित शक्ति तो है,
दूर हो आराध्य चाहे, प्राण में अनुरक्ति तो है,
         इन सुनहली इंद्रियों को प्रेम की,
         अग्नि से यदि तुम दहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
वह तरलता है हृदय में, किरण को भी लौ बना दूँ,
झाँक ले यदि एक तारा, तो उसे मैं सौ बना दूँ,
         इस तरलता के तरंगित प्राण में -
         प्राण बनकर यदि रहो, तो ले चलूँ।
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
         लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ।
- रामकुमार वर्मा

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
रामकुमार वर्मा
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 आत्म-समर्पण
 ये गजरे तारों वाले
इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website