अप्रतिम कविताएँ

अनमनी है सांझ
बहुत ही अनमनी है सांझ, कैसे तो बिताएं हम!

अचानक ही
छलक आये नयन कुछ
कह रहे, देखो,
अचानक भर उठे
स्वर, मन, हृदय
अवसाद से, देखो,

भला क्या-क्या छुपाओ तुम, भला क्या-क्या छुपाएं हम !

घनेरा सुरमई आकाश
भीतर तक
उतर आया,
किसी शरबिद्ध पंछी सा
अकिंचन मन
है घबराया,

चलो कुछ गुनगुनाओ तुम, चलो कुछ गुनगुनाएं हम !
बहुत ही अनमनी है सांझ, कैसे तो बिताएं हम !!
- अमृत खरे
अवसाद : दुख; शरबिद्ध : बाण से घायल; अकिंचन : थोड़ा सा

अमृत खरे का काव्य संकलन : मयूर पंख (गीत संग्रह)

काव्यालय को प्राप्त: 14 May 2019. काव्यालय पर प्रकाशित: 14 Feb 2020

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चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

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कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!

              लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

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भाग 2 मूल तरकीब

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