अप्रतिम कविताएँ
अमृतमय

ओड़िया के प्रसिद्ध कवि गंगाधर मेहेर का जन्म ९ अगस्त १८६२ को सम्बलपुर में हुआ था और उनका देहावसान ४ अप्रैल १९२४ को|
गंगाधर मेहेर जी ओड़िआ साहित्य के 'प्रकृति-कवि' माने जाते हैं। गंगाधर जी परंपरा और आधुनिकता के समन्वयवादी और
कर्मयोगी कवि थे। उनकी कविताओं में आशावाद की स्पष्ट झलक है| उनकी साहित्यिक कृतियों में 'तपस्विनी',
'प्रणय-वल्लरी', 'कीचक-वध', 'उत्कल-लक्ष्मी', 'अयोध्या-दृश्य', 'पद्मिनी', 'अर्घ्यथाली' और
'कृषक-संगीत' प्रमुख हैं। उनकी सारी कृतियों का संकलन "गंगाधर ग्रन्थावली" कई बार प्रकाशित होकर लोकप्रिय बन चुकी है।
उनका "तपस्विनी" महाकाव्य सीता-चरित्र पर आधारित है और इसे 'सीतायन' कहा जा सकता है| इस में रामचन्द्र
द्वारा परित्यक्ता सीता को 'तपस्विनी' के रूप में प्रस्तुत किया गया है|

मैं तो बिन्दु हूँ
अमृत-समुन्दर का,
छोड़ समुन्दर अम्बर में
ऊपर चला गया था ।
अब नीचे उतर
मिला हूँ अमृत- धारा से ;
चल रहा हूँ आगे
समुन्दर की ओर ।
पाप-ताप से राह में
सूख जाऊँगा अगर,
तब झरूँगा मैं ओस बनकर ।
अमृतमय अमृत-धारा के संग
समा जाऊँगा समुन्दर में ॥

- गंगाधर मेहेर
- अनुवाद : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
*सौजन्य :*
"तपस्विनी" - मूल ओड़िआ महाकाव्य : स्वभावकवि गंगाधर मेहेर
संपूर्ण हिन्दी अनुवाद : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
प्रकाशक : सम्बलपुर विश्वविद्यालय, ज्योति-विहार, सम्बलपुर, ओड़िशा
प्रथम संस्करण : अगस्त २०००.
Dr. Harekrishna Meher
Email : meher.hk @gmail.com

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इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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