अप्रतिम कविताएँ
गीत-कवि की व्यथा: दो
इस गीत-कवि को क्या हुआ?
अब गुनगुनाता तक नहीं।

इसने रचे जो गीत
जग ने पत्रिकाओं
में पढ़े।
मुखरित हुए
तो भजन-जैसे
अनगिनत होठों चढ़े।

होंठों चढ़े, वे मन-बिंधे
अब गीत गाता तक नहीं।

अनुराग, राग
विराग पर सौ
व्यंग-शर इसने सहे।
जब-जब हुए
गीले नयन तब-तब
लगाये कहकहे।

वह अट्टहासों का धनी
अब मुस्कुराता तक नहीं।

मेलों तमाशों में
लिए इसको फिरी
आवारगी।
कुछ ढूंढती-सी
दृष्टि में हर शाम
मधुशाला जगी।

अब भीड़ दिखती है जिधर
उस ओर जाता तक नहीं।
- किशन सरोज
Poet's Address: 32, Azadpuram, near Hartman College, Bareili - 243122
Ref: Naye Purane, April,1998 Hospital Colony Mohangunj, Tiloi Raibareili (U.P.) - 229 309

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
किशन सरोज
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 गीत-कवि की व्यथा: एक
 गीत-कवि की व्यथा: दो
इस महीने :
'कमरे में धूप'
कुंवर नारायण


हवा और दरवाज़ों में बहस होती रही,
दीवारें सुनती रहीं।
धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी
किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही।

सहसा किसी बात पर बिगड़ कर
हवा ने दरवाज़े को तड़ से
एक थप्पड़ जड़ दिया !

खिड़कियाँ गरज उठीं,
अख़बार उठ कर
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'खिड़की और किरण'
नूपुर अशोक


हर रोज़ की तरह
रोशनी की किरण
आज भी भागती हुई आई
उस कमरे में फुदकने के लिए
मेज़ के टुकड़े करने के लिए
पलंग पर सो रहने के लिए

भागती हुई उस किरण ने
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'किरण'
सियाराम शरण गुप्त


ज्ञात नहीं जानें किस द्वार से
कौन से प्रकार से,
मेरे गृहकक्ष में,
दुस्तर-तिमिरदुर्ग-दुर्गम-विपक्ष में-
उज्ज्वल प्रभामयी
एकाएक कोमल किरण एक आ गयी।
बीच से अँधेरे के
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'रोशनी'
मधुप मोहता


रात, हर रात बहुत देर गए,
तेरी खिड़की से, रोशनी छनकर,
मेरे कमरे के दरो-दीवारों पर,
जैसे दस्तक सी दिया करती है।

मैं खोल देता हूँ ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website