अप्रतिम कविताएँ
गीत-कवि की व्यथा: दो
इस गीत-कवि को क्या हुआ?
अब गुनगुनाता तक नहीं।

इसने रचे जो गीत
जग ने पत्रिकाओं
में पढ़े।
मुखरित हुए
तो भजन-जैसे
अनगिनत होठों चढ़े।

होंठों चढ़े, वे मन-बिंधे
अब गीत गाता तक नहीं।

अनुराग, राग
विराग पर सौ
व्यंग-शर इसने सहे।
जब-जब हुए
गीले नयन तब-तब
लगाये कहकहे।

वह अट्टहासों का धनी
अब मुस्कुराता तक नहीं।

मेलों तमाशों में
लिए इसको फिरी
आवारगी।
कुछ ढूंढती-सी
दृष्टि में हर शाम
मधुशाला जगी।

अब भीड़ दिखती है जिधर
उस ओर जाता तक नहीं।
- किशन सरोज
Poet's Address: 32, Azadpuram, near Hartman College, Bareili - 243122
Ref: Naye Purane, April,1998 Hospital Colony Mohangunj, Tiloi Raibareili (U.P.) - 229 309

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इन दर्पणों में देखा तो
~ वाणी मुरारका

वर्षों पहले यहाँ कुछ लोग रहते थे। उन्होंने कुछ कृतियां रचीं, जिन्हें 'वेद' कहते हैं। वेद हमारी धरोहर हैं, पर उनके विषय में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानती हूँ। जो जानती हूँ वह शून्य के बराबर है।

फिर एक व्यक्ति ने, अमृत खरे ने, मेरे सामने कुछ दर्पण खड़े कर दिए। उन दर्पणों में वेद की कृतियाँ एक अलग रूप में दिखती हैं, जिसे ग्रहण कर सकती हूँ, जो अपने में सरस और कोमल हैं। पर उससे भी महत्वपूर्ण, अमृत खरे ने जो दर्पण खड़े किए हैं उनमें मैं उन लोगों को देख सकती हूँ जो कोटि-कोटि वर्षों पहले यहाँ रहा करते थे। ये दर्पण वेद की ऋचाओं के काव्यानुवाद हैं, और इनका संकलन है 'श्रुतिछंदा'।

"श्रुतिछंदा" में मुझे दिखती है ...

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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