गीत-कवि की व्यथा: दो
इस गीत-कवि को क्या हुआ?
अब गुनगुनाता तक नहीं।
इसने रचे जो गीत
जग ने पत्रिकाओं
में पढ़े।
मुखरित हुए
तो भजन-जैसे
अनगिनत होठों चढ़े।
होंठों चढ़े, वे मन-बिंधे
अब गीत गाता तक नहीं।
अनुराग, राग
विराग पर सौ
व्यंग-शर इसने सहे।
जब-जब हुए
गीले नयन तब-तब
लगाये कहकहे।
वह अट्टहासों का धनी
अब मुस्कुराता तक नहीं।
मेलों तमाशों में
लिए इसको फिरी
आवारगी।
कुछ ढूंढती-सी
दृष्टि में हर शाम
मधुशाला जगी।
अब भीड़ दिखती है जिधर
उस ओर जाता तक नहीं।
-
किशन सरोज
Poet's Address: 32, Azadpuram, near Hartman College, Bareili - 243122
Ref: Naye Purane, April,1998
Hospital Colony Mohangunj, Tiloi
Raibareili (U.P.) - 229 309