गीत-कवि की व्यथा: एक
ओ लेखनी! विश्राम कर
अब और यात्रायें नहीं।
मंगल कलश पर
काव्य के अब शब्द
के स्वस्तिक न रच।
अक्षम समीक्षायें
परख सकतीं न
कवि का झूठ-सच।
लिख मत गुलाबी पंक्तियाँ
गिन छन्द, मात्रायें नहीं।
बन्दी अंधेरे
कक्ष में अनुभूति की
शिल्पा छुअन।
वादों-विवादों में
घिरा साहित्य का
शिक्षा सदन।
अनगिन प्रवक्ता हैं यहाँ
बस, छात्र-छात्रायें नहीं।
-
किशन सरोज
Poet's Address: 32, Azadpuram, near Hartman College, Bareili
- 243122
Ref: Naye Purane, April,1998
Hospital Colony Mohangunj, Tiloi
Raibareili (U.P.) - 229 309
इस महीने :
'दरवाजे में बचा वन'
गजेन्द्र सिंह
भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।
नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...
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