काव्यालय के आँकड़े
जुलाई 2020 – मार्च 2021

वाणी मुरारका, विनोद तिवारी
(सम्पादक, काव्यालय)

जब विश्व भर में मानवजाति एक नए अदृश्य ख़तरे से लड़ रही थी, तब काव्यालय के जीवन में क्या हो रहा था? काव्यालय, एक मानसिक अस्तित्व, जो भौतिक नहीं है, फिर भी एक यथार्थ है। प्रस्तुत है, काव्यालय की चौथी वार्षिक रिपोर्ट --

जग का, जग के लिए

जुलाई 2020 से मार्च 2021 के बीच काव्यालय के जीवन में एक नई बात हुई, जो बड़ी भी है, सूक्ष्म भी।

17 अगस्त 2020 को औपचारिक और क़ानूनी रूप से काव्यालय को एक पब्लिक चैरिटेबल ट्र्स्ट "Kaavyaalaya Trust" के रूप में ढाला गया। अब काव्यालय का अपना अस्तित्व, बैंक अकाउन्ट, पैन नम्बर, और आर्थिक खाता है।

आरम्भ में काव्यालय हमारी व्यक्तिगत परियोजना थी, एक व्यक्तिगत अनुभूति थी। उसका अस्तित्व और क़ानूनी दायित्व भी व्यक्तिगत अस्तित्व के अन्तर्गत था।

किन्तु सौन्दर्य को संसार के संग साझा करने का संकल्प काव्यालय का बीज है, ऊर्जा का स्रोत है। अत: जो प्रारम्भ से ही जग का, जग के लिए था, अब और भी प्रत्यक्ष रूप से जग का, जग के लिए है। यह एक तरह से काव्यालय का एक नया जन्म है।

अब क्योंकि आयकर विभाग को वार्षिक लेखा-जोखा देना ही है, इसलिए आप संग भी काव्यालय की वार्षिक रिपोर्ट अप्रैल से मार्च का साझा करेंगे। इस वर्ष, पिछली वार्षिक रिपोर्ट के बाद जुलाई 2020 - मार्च 2021।

प्रकाशन के आंकड़े

जुलाई 2020 – मार्च 2021 की अवधि में हमारी कुल 25 प्रस्तुतियों के स्रोत और प्रकार यह थे। लिंक पर क्लिक करके आप उनकी सूची देख सकते हैं और उन रचनाओं का पुन: रसास्वादन कर सकते हैं।

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कुल प्रस्तुति 25

प्रस्तुतियों के प्रकार




प्रस्तुति के स्रोत

पाठकों के आंकड़े

काव्यालय की प्रस्तुतियाँ लग-भग 2200 पाठकों को ईमेल पर नियमित रूप से भेजी जाती हैं। ईमेल हमारा सम्प्रेषण का मुख्य माध्यम है। जो सब्स्क्राइबर कई महीनों तक (कम से कम छह महीने) हमारा कोई ईमेल नहीं खोलते हैं, उनका सबस्क्रिपशन समाप्त हो जाता है।

इस साल की प्रस्तुतियों का ईमेल पर यह पाठक संख्या रही –

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यह हैं वेबसाइट पर आगन्तुकों के आँकड़े --

आर्थिक स्थिति

इस अवधि में आपने जो आर्थिक योगदान दिया यह आपका काव्यालय के प्रति स्नेह और सम्मान का द्योतक है। आप सभी को धन्यवाद। आपके सहयोग से व्यावहारिक ऊर्जा तो मिलती ही है, साथ ही यह विश्वास होता है कि नि:सन्देह काव्यालय में काव्य के पोषक तत्व का विस्तृत माध्यम बनने की क्षमता है।

इस बार हम दो भाग में आय और खर्च का हिसाब दे रहे हैं। ट्रस्ट बनने के पहले, और ट्रस्ट बनने के बाद का।

आर्थिक स्थिति -- ट्रस्ट बनने के पहले (1 जुलाई 2020 - 16 अगस्त 2020)

सहयोग देने वाले पाठकगण : 4

व्यय आय
पिछली वार्षिक रिपोर्ट में लिखित कमी 8,896 आपसे प्राप्त योगदान 10,500
ईमेल सम्प्रेषण 394 पुस्तक की बिक्री 3,360
वेब होस्टिंग 535
पुस्तक उपहार 350
कोविड राहत को काव्यालय का योगदान (पुस्तक बिक्री का 50%) 2,850
अन्तराष्ट्रीय पोस्टेज 6,033
कुल आय₹ 13,860
कमी
(वाणी द्वारा पूरित)
₹ 5,198
कुल ₹ 19,058 कुल ₹ 19,058
व्यक्तिगत काव्यालय का अंतिम शेष 0

आर्थिक स्थिति -- ट्रस्ट बनने के बाद (17 अगस्त 2020 - 31 मार्च 2021)

सहयोग देने वाले पाठकगण : 27 (सूची के लिए यहाँ क्लिक करें)
पुस्तक (समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न) की बिक्री से प्राप्त समस्त राशि विनोद तिवारी ने काव्यालय को भेंट दिया है

व्यय आय
ईमेल सम्प्रेषण 3,050.56 आपसे प्राप्त योगदान 14,098.78
वेब होस्टिंग 3,646.74 पुस्तक की बिक्री 13,484.58
पुस्तक प्रचार 700.00 बैंक से ब्याज 65.49
ऑडिट शुल्क590.00
बैंक, गेटवे, और अन्य शुल्क 548.88
कुल खर्च ₹ 8,536.18
आधिक्य ₹ 19,112.67
कुल₹ 27,648.85कुल₹ 27,648.85

रचनाओं का मूल्य, काव्यालय के सम्पादन में लगे वक्त, तकनीकी मेहनत का मूल्य नहीं जोड़ा गया है। सभी रचनाकार हमें नि:शुल्क अपनी प्रतिभा का उपहार देते हैं। काव्यालय कुटुम्ब के संचालन का कार्य भी नि:शुल्क है।

हमारा उद्देश्य है कि सौन्दर्य के द्वारा, एक व्यापक विस्तृत आयाम का आभास हो। मीडिया और इन्टरनेट के शोर के बीच शान्ति और सुकून की सरिता बहे। यह अलौकिक अनुभूति और कई मित्रों तक पहुँचे। और यह सब विज्ञापनों के विकर्षण के बिना हो।

इस उद्देश्य को ऊर्जा देने के लिये
अप्रतिम अनुभूति में डूबने के लिये "समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न"
आर्थिक सहयोग दें --

प्रकाशित: 29 अक्टूबर 2021


Topic:
Editorial (9)
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'Tum To Pahle Aise Naa The'
Satya Mishra


tum to pahale aise n the
raat biraat aaoge
der saver aaoge...
ham neend men rahen
aa(n)kh naa khule
to rooTh jaaoge...

svapn men aaoge
divaasvapn dikhaaoge
ham kalam uThaae(n)ge
to chhip jaaoge...

bechainiyon kaa kabhee
..

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This Month :
'Kuchh Prem Kavitaayein'
Pradeep Shukla


1.
prem kavitaa, kahaaniyaa(n) aur ph़ilmen
jahaa(n) tak le jaa sakatee hain
main gayaa hoo(n) usake paar
kaee baar.
ik ajeeb-see bechainee hotee hai vahaa(n)
jee karataa hai thaam loo(n) koee cheej
koee haath, koee sahaaraa.
main Tik naheen paataa vahaa(n) der tak.

suno,
abase
..

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ghor andhakaar ho, chal rahee bayaar ho,
aaj dvaar dvaar par yah diyaa bujhe naheen.
yah nisheeth kaa diyaa laa rahaa vihaan hai.

shakti kaa diyaa huaa, shakti ko diyaa huaa,
bhakti se diyaa huaa, yah svatantrataadiyaa,
ruk rahee n naav ho, zor kaa bahaav ho,
      aaj gangadhaar par yah diyaa bujhe naheen!
      yah svadesh kaa diyaa praaN ke samaan hai!
..

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