होलोकॉस्ट में एक कविता

प्रियदर्शन

गर्डा वाइज़मैन सिर्फ सत्रह साल की थी जब हिटलर के गेस्टापो उसे उठा ले गए थे। वह पोलिश यहूदी थी। उसे बिल्कुल अमानवीय स्थितियों में शून्य से नीचे के तापमान पर कई दिन चलाते हुए क़रीब पांच सौ किलोमीटर दूर ले जाकर एक कारखाने में बंद कर दिया गया था। मौत के इस सफ़र में कई लोग उसके सामने दम तोड़ते रहे। वह तीन साल से ऊपर इस यातना शिविर में रही। दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के क़रीब जब एक अमेरिकी टुकड़ी इस बंद कारख़ाने तक पहुंची तो वह सिर्फ तीस किलो की एक कंकाल सी लड़की में बदल चुकी थी जिसके चारों तरफ़ मृत या मरणासन्न लोग थे।

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है-- 'लेट मेन बी नोबेल, मर्सीफुल एंड गुड'

यह बिल्कुल स्तब्ध छोड़ जाने वाला अनुभव है। भूख, अपमान, ग़लाज़त और मृत्यु के भयावह संसार में तीन साल तड़प-तड़प कर जी रही एक लड़की अपने भीतर एक कवि की पंक्ति को बचाए रखती है। या यह पंक्ति है जिसने लड़की के भीतर जीवन और उम्मीद की लौ जलाए रखी?

वह लड़की गेटे को क्यों याद कर रही थी? शायद इसलिए कि कविता ने ही उसे यह आस्था दी थी कि मनुष्य भले-बुरे में भेद कर सकता है। जिस नरक में बहुत सी लड़कियां छटपटा कर मर गईं वहां एक स्त्री एक कविता की डोर पकड़े जीती रही। और यह भी कम अचरज की बात नहीं कि हर तरफ़ मृत्यु के कारोबार के बीच, जान लेने और देने के काम में झोंक दिए गए किसी सैनिक को भी यह कविता मालूम थी और इसका मर्म भी मालूम था।

गर्डा और कर्ट की कहानी यहीं ख़त्म नहीं हुई। दोनों ने शादी की, पचपन बरस से ज़्यादा साथ जिए। इस बीच गर्डा ने आत्मकथा भी लिखी- 'ऑल बट माई लाइफ', जिस पर बाद में फिल्म बनी-- वन सर्वाइवर रिमेंबर्स।

2004 में कर्ट नहीं रहा। अप्रैल 2022 में गर्डा ने आख़िरी सांस ली। न कर्ट बचा न गर्डा। वह हिटलर भी नहीं बचा जो नस्ली श्रेष्ठता के खोखले दंभ के साथ दुनिया जीतने निकला था और जो करोड़ों निरपराध लोगों की हत्या का गुनहगार था। लेकिन कहानी बची रही-- और एक कविता भी।

जिस समय हिटलर खुद को गोली मार रहा था, उसी समय उसके बनाए यातना शिविर में 21 साल की एक लड़की एक कवि को जीवित कर रही थी। गेटे ने 'डिवाइन' नाम की यह कविता 1789 में आधिकारिक तौर पर प्रकाशित होने दी थी। यह फ्रांसीसी क्रांति का साल था। यानी डेढ़ सौ साल से ज़्यादा समय बाद भी वह कविता एक युद्ध में जीवन, आस्था और रिश्तों का रसायन बना रही थी। क्या हम कह सकते हैं कि यह कविता की ताक़त है?


गेटे की कविता 'डिवाइन' का प्रियदर्शन द्वारा अनुवाद 'दिव्य' आप यहाँ पढ़ सकते हैं

प्रकाशित : 1 मार्च 2024

Topic:
Resolve (14)
Inspirational (19)
War Conflict (7)
Hate (3)
Torture Terror (5)
Response (9)
***
Donate
A peaceful house of the beauty and solace of Hindi poetry, free from the noise of advertisements... to keep Kaavyaalaya like this, please donate.

₹ 500
₹ 250
Another Amount
This Month :
'Nav Oorjaa Raag'
Bhawna Saxena


naa ab talavaaren, naa Dhaal kee baat hai,
yuddh smaarT hai, takaneek kee saugaat hai.
Dron gagan men, signal j़meen par,
saaibar kamaanD hai ab sabase oopar.

suno javaanon! ye DijiTal raN hai,
mastiShk aur masheen kaa yah sangam hai.
koD hathiyaar hai aur DeTaa ... ..

Read and listen here...
This Month :
'Darwaaze Mein Bachaa Man'
Gajendra Singh


bheegaa baarish men daravaajaa chaukhaT se kuchh jhool gayaa hai.
kabhee peḌ thaa, ye daravaajaa saty ye shaayad bhool gayaa hai.

naye-naye pad chinh naapataa khaḌaa huaa hai sahamaa-sahamaa.
kabhee banaa thaa peḌ suhaanaa dhoop-chhaa(n)v paa lamahaa-lamahaa.
chaukhaT men ab jaḌaa huaa hai ek jagah par khaḌaa huaa hai,
kabhee Thikaanaa thaa vihagon kaa aaj ...

..

Read and listen here...
संग्रह से कोई भी कविता | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेखहमारा परिचय | सम्पर्क करें

a  MANASKRITI  website