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एक गीत क्या मेरा होगा
घर से दफ़्तर पाँव बढ़ाते
मीटिंग से मीटिंग में जाते
एक हँसी मुख पे चिपकाए
प्लास्टिक वाली हैलो, हाय
ए.सी. में उष्मा ढूँढे मन
खुद को जहाँ-तहाँ ढूँढे मन
कहो सखे अन्वेषण क्षण में
एक सुधि क्या मेरी होगी
एक बिम्ब क्या मेरा होगा

बहना को बिछिया पहनाते
बिटिया को देहरी पुगवाते
बंधन्वारों के झुरमुट से
हृदय-चन्द्र बिलखे सम्पुट से
मन में आशीषें आयेंगीं
कही एक भी ना जायेंगी
कहो सखे उन भावुक पल में
एक दुआ क्या मेरी होगी
एक दीप क्या मेरा होगा

सुख-दुःख के पाटों पर चलते
गिरते, उठते और संभलते
पाँवों को पोखर में धोते
धानों को खेतों में बोते
गीत होठ पर कुछ आयेंगे
मन पे लेप लगा जायेंगे
कहो सखे चन्दन गीतों में
एक पंक्ति क्या मेरी होगी
एक गीत क्या मेरा होगा

कभी गलत कुछ हो जायेगा
मन, मन ही मन अकुलाएगा
प्रहर रात के जब छाएंगे
दुःख कुछ गहरे हो जाएंगे
दिल ढूंढेगा आस किरण को
बिना आंकलन वाले मन को
कहो सखे सच्चे मीतों में
एक वफ़ा क्या मेरी होगी
एक नाम क्या मेरा होगा
- शार्दुला झा नोगजा

काव्यालय पर प्रकाशित: 28 Nov 2016

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फिर कहीं मधुमास की पदचाप सुन,
डाल मेंहदी की लजीली हो गई।

दूर तक अमराइयों, वनवीथियों में
लगी संदल हवा चुपके पाँव रखने,
रात-दिन फिर कान आहट पर लगाए
लगा महुआ गंध की बोली परखने

दिवस मादक होश खोए लग रहे,
साँझ फागुन की नशीली हो गई।

हँसी शाखों पर कुँवारी मंजरी
..

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यूँ छेड़ कर धुन कोई सुमधुर रुक गया
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सुनहरी पंक्तियों के वस्त्र पहनाता रहा
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यूँ छेड़ कर धुन कोई सुमधुर रुक गया
कि मैं मानस की दीवारों पर

..

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