अप्रतिम कविताएँ
एक गीत क्या मेरा होगा
घर से दफ़्तर पाँव बढ़ाते
मीटिंग से मीटिंग में जाते
एक हँसी मुख पे चिपकाए
प्लास्टिक वाली हैलो, हाय
ए.सी. में उष्मा ढूँढे मन
खुद को जहाँ-तहाँ ढूँढे मन
कहो सखे अन्वेषण क्षण में
एक सुधि क्या मेरी होगी
एक बिम्ब क्या मेरा होगा

बहना को बिछिया पहनाते
बिटिया को देहरी पुगवाते
बंधन्वारों के झुरमुट से
हृदय-चन्द्र बिलखे सम्पुट से
मन में आशीषें आयेंगीं
कही एक भी ना जायेंगी
कहो सखे उन भावुक पल में
एक दुआ क्या मेरी होगी
एक दीप क्या मेरा होगा

सुख-दुःख के पाटों पर चलते
गिरते, उठते और संभलते
पाँवों को पोखर में धोते
धानों को खेतों में बोते
गीत होठ पर कुछ आयेंगे
मन पे लेप लगा जायेंगे
कहो सखे चन्दन गीतों में
एक पंक्ति क्या मेरी होगी
एक गीत क्या मेरा होगा

कभी गलत कुछ हो जायेगा
मन, मन ही मन अकुलाएगा
प्रहर रात के जब छाएंगे
दुःख कुछ गहरे हो जाएंगे
दिल ढूंढेगा आस किरण को
बिना आंकलन वाले मन को
कहो सखे सच्चे मीतों में
एक वफ़ा क्या मेरी होगी
एक नाम क्या मेरा होगा
- शार्दुला झा नोगजा

काव्यालय पर प्रकाशित: 28 Nov 2016

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इन दर्पणों में देखा तो
~ वाणी मुरारका

वर्षों पहले यहाँ कुछ लोग रहते थे। उन्होंने कुछ कृतियां रचीं, जिन्हें 'वेद' कहते हैं। वेद हमारी धरोहर हैं, पर उनके विषय में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानती हूँ। जो जानती हूँ वह शून्य के बराबर है।

फिर एक व्यक्ति ने, अमृत खरे ने, मेरे सामने कुछ दर्पण खड़े कर दिए। उन दर्पणों में वेद की कृतियाँ एक अलग रूप में दिखती हैं, जिसे ग्रहण कर सकती हूँ, जो अपने में सरस और कोमल हैं। पर उससे भी महत्वपूर्ण, अमृत खरे ने जो दर्पण खड़े किए हैं उनमें मैं उन लोगों को देख सकती हूँ जो कोटि-कोटि वर्षों पहले यहाँ रहा करते थे। ये दर्पण वेद की ऋचाओं के काव्यानुवाद हैं, और इनका संकलन है 'श्रुतिछंदा'।

"श्रुतिछंदा" में मुझे दिखती है ...

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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