अप्रतिम कविताएँ
एक गीत क्या मेरा होगा
घर से दफ़्तर पाँव बढ़ाते
मीटिंग से मीटिंग में जाते
एक हँसी मुख पे चिपकाए
प्लास्टिक वाली हैलो, हाय
ए.सी. में उष्मा ढूँढे मन
खुद को जहाँ-तहाँ ढूँढे मन
कहो सखे अन्वेषण क्षण में
एक सुधि क्या मेरी होगी
एक बिम्ब क्या मेरा होगा

बहना को बिछिया पहनाते
बिटिया को देहरी पुगवाते
बंधन्वारों के झुरमुट से
हृदय-चन्द्र बिलखे सम्पुट से
मन में आशीषें आयेंगीं
कही एक भी ना जायेंगी
कहो सखे उन भावुक पल में
एक दुआ क्या मेरी होगी
एक दीप क्या मेरा होगा

सुख-दुःख के पाटों पर चलते
गिरते, उठते और संभलते
पाँवों को पोखर में धोते
धानों को खेतों में बोते
गीत होठ पर कुछ आयेंगे
मन पे लेप लगा जायेंगे
कहो सखे चन्दन गीतों में
एक पंक्ति क्या मेरी होगी
एक गीत क्या मेरा होगा

कभी गलत कुछ हो जायेगा
मन, मन ही मन अकुलाएगा
प्रहर रात के जब छाएंगे
दुःख कुछ गहरे हो जाएंगे
दिल ढूंढेगा आस किरण को
बिना आंकलन वाले मन को
कहो सखे सच्चे मीतों में
एक वफ़ा क्या मेरी होगी
एक नाम क्या मेरा होगा
- शार्दुला झा नोगजा
विषय:
रिश्ते (17)

काव्यालय पर प्रकाशित: 28 Nov 2016

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 एक गीत क्या मेरा होगा
 छापे माँ तेरे हाथों के
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

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इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

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इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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