धीरे धीरे शाम चली आई
भीनी भीनी खुशबू छाई
इन्द्रधनुषी रँग मेरे मन का
मैं उसकी परछाई, छाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥
बूँद पडे बारिश की, सौंधी
महक मिट्टी की भाई, भाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥
भीगी मेरे तन की चादर
प्यास न पर बुझ पाई, पाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥
कल जो बीज थे मैने बोए
हरियाली अब छाई, छाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥
आँगन में कुछ फूल खिले हैं
रँगत मन को भाई, भाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥
सुर से सुर मिल राग बना यह
मालकौंस रस बरसाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥
सातरँगों की सरगम, कारी
कोयल ने है गाई, गाई
धीरे धीरे शाम चली आई॥
महकाए मन मेरा देवी
भोर न ऐसी आई, आई
धीरे धीरे शाम चली आई॥
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देवी नागरानी