Toggle navigation
English Interface
संग्रह से कोई भी रचना
काव्य विभाग
शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु
मुक्तक
प्रतिध्वनि
काव्य लेख
सहयोग दें
अप्रतिम कविताएँ
प्राप्त करें
✉
अप्रतिम कविताएँ
प्राप्त करें
✉
...
बरसों के बाद कहीं
बरसों के बाद कभी
हमतुम यदि मिलें कहीं,
देखें कुछ परिचित से,
लेकिन पहिचानें ना।
याद भी न आये नाम,
रूप, रंग, काम, धाम,
सोचें,
यह सम्मभव है -
पर, मन में मानें ना।
हो न याद, एक बार
आया तूफान, ज्वार
बंद, मिटे पृष्ठों को -
पढ़ने की ठाने ना।
बातें जो साथ हुई,
बातों के साथ गयीं,
आँखें जो मिली रहीं -
उनको भी जानें ना।
-
गिरिजा कुमार माथुर
काव्यपाठ:
विनोद तिवारी
काव्यालय पर प्रकाशित: 1 Feb 2019
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।
₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
गिरिजा कुमार माथुर
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ
आज हैं केसर रंग रंगे वन
थकी दुपहरी में पीपल पर
बरसों के बाद कहीं
रात हेमन्त की
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी
कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!
एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना
| काव्य विभाग:
शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु
|
प्रतिध्वनि
|
काव्य लेख
सम्पर्क करें
|
हमारा परिचय
सहयोग दें