आज हैं केसर रंग रंगे वन
रंजित शाम भी फागुन की खिली खिली पीली कली-सी
केसर के वसनों में छिपा तन
सोने की छाँह-सा
बोलती आँखों में
पहले वसन्त के फूल का रंग है।
गोरे कपोलों पे हौले से आ जाती
पहले ही पहले के
रंगीन चुंबन की सी ललाई।
आज हैं केसर रंग रंगे
गृह द्वार नगर वन
जिनके विभिन्न रंगों में है रंग गई
पूनो की चंदन चाँदनी।
जीवन में फिर लौटी मिठास है
गीत की आख़िरी मीठी लकीर-सी
प्यार भी डूबेगा गोरी-सी बाहों में
ओठों में आँखों में
फूलों में डूबे ज्यों
फूल की रेशमी रेशमी छाँहें।
आज हैं केसर रंग रंगे वन।
काव्यालय को प्राप्त: 1 Feb 2022.
काव्यालय पर प्रकाशित: 25 Feb 2022