अप्रतिम कविताएँ
भ्रम
दिन भर एक कोलाहल के साध
उस हँसी के ठहाकों के बीच
जिन्दा रहने की वो जुजुत्सा
सामान्य दिखने का वो सफल प्रयास
दम तोड़ देता है
रात की आहट पर
जब घेरता है
वही कुहाँसा घनघोर अन्धेरा
और गिर पड़ती है
पानी की दो बूँदें
मेरे ही गालों पर
हमेशा की तरह ...
- अरिफ खान
Arif Khan
email: [email protected]
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 नियति
 भ्रम
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी


कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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