अप्रतिम कविताएँ
आज नदी बिलकुल उदास थी

आज नदी बिलकुल उदास थी।
सोयी थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर -
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसे नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।
- केदारनाथ अग्रवाल
काव्यपाठ: वाणी मुरारका

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'या देवी...'
उपमा ऋचा


1
सृष्टि की अतल आंखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आई है देवी
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2
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दिन का अनुष्ठान
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एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
..

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