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आज नदी बिलकुल उदास थी
आज नदी बिलकुल उदास थी।
सोयी थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर -
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसे नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।
-
केदारनाथ अग्रवाल
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वाणी मुरारका
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केदारनाथ अग्रवाल
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तुम्हारे लिए, तुम्हारे पिता जैसे नहीं हैं,
एकांत की खोह में जब जाता हूँ
बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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अप्रैल 2023 – मार्च 2024
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