अप्रतिम कविताएँ
वे लेखक नहीं हैं
वे लिखते हैं
लेकिन कागज पर नहीं
वे लिखते हैं धरती पर

वे लिखते हैं
लेकिन कलम से नहीं
वे लिखते हैं
हल की नोंक से।

वे धरती पर वर्णमाला नहीं
रेखाएं बनाते हैं
दिखाते हैं वे
मिट्टी को फाड़ कर
सृजन के आदिम और अनंत स्रोत

वे तय करते हैं
समय के ध्रुवांत
समय उनको नहीं काटता
समय को काटते हैं वे इस तरह कि
पसीना पोछते-पोछते
समय कब चला गया
पता ही नहीं चलता उन्हें

वे धरती पर लिखते हैं
फाल से जीवन का अग्रलेख
वे हरियाली पैदा करते हैं
वे लाली पैदा करते हैं
वे पामाली संचित करते हैं
शब्दों के बिना
जीवन को अर्थ देते हैं
ऊर्जा देते हैं, रस देते हैं, गंध देते हैं,
रंग देते हैं, रूप देते हैं
जीवन को वे झूमना सिखाते हैं
नाचना-गाना सिखाते हैं
लेकिन वे न लेखक हैं
और न कलाकार
वे धरती पर
हल की नोंक से लिखते हैं
उन्हें यह पता भी नहीं कि
लेखकों से उनका कोई रिश्ता है क्या?
उनमें कोई सर्जक क्षमता है क्या?
- खगेंद्र ठाकुर
कविता साभार गीता दूबे

हल: बीज बोने के लिए जमीन जोतने का (तैयार करने का) एक उपकरण, plough;
फाल: हल का आगे का हिस्सा जिससे जमीन जोती जाती है, ploughshare
पामाली : बर्बादी
विषय:
समाज (30)

काव्यालय पर प्रकाशित: 20 Mar 2020

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अन्य राशि
इस महीने :
'एक आशीर्वाद'
दुष्यन्त कुमार


जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

वाणी मुरारका
इस महीने :
'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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