अप्रतिम कविताएँ
उदासी खूबसूरत
अम्बुधि लहरों के शोर में
असीम शान्ति की अनुभूति लिए,
अपनी लालिमा के ज़ोर से
अम्बर के साथ – लाल सागर को किए,
विहगों के होड़ को
घर लौट जाने का संदेसा दिए,
दिनभर की भाग दौड़ को
संध्या में थक जाने के लिए
दूर क्षितिज के मोड़ पे
सूरज को डूब जाते देखा!

तब, तट पे बैठे
इस दृश्य को देखते
नम आँखें लिए
बाजुओं को आजानुओं से टेकते
इस व्याकुल मन में
एक विचार आया!
किंतु उस उलझन का,
परामर्श आज भी नही पाया!
की जब विदाई में एक दुल्हन रोती है,
जब बिन बरखा-दिन में धुप खोती है,
जब शाम अंधेरे में सोती है,
तब, क्या उदासी खुबसूरत नही होती है?
- दीपक कुमार
अम्बुधि : सागर । आजानु : घुटना
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विषय:
शाम (11)

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जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

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कभी-कभी लगता है
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केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

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