अप्रतिम कविताएँ
उदास न हो
मेरे नदीम मेरे हमसफर, उदास न हो।
कठिन सही तेरी मंज़िल, मगर उदास न हो।

कदम कदम पे चट्टानें खड़ी रहें, लेकिन
जो चल निकलते हैं दरिया तो फिर नहीं रुकते।
हवाएँ कितना भी टकराएँ आंधियाँ बनकर,
मगर घटाओं के परछम कभी नहीं झुकते।
मेरे नदीम मेरे हमसफर .....

हर एक तलाश के रास्ते में मुश्किलें हैं, मगर
हर एक तलाश मुरादों के रंग लाती है।
हज़ारों चांद सितारों का खून होता है
तब एक सुबह फिज़ाओं पे मुस्कुराती है।
मेरे नदीम मेरे हमसफर ....

जो अपने खून को पानी बना नहीं सकते
वो ज़िन्दगी में नया रंग ला नहीं सकते।
जो रास्ते के अन्धेरों से हार जाते हैं
वो मंज़िलों के उजालों को पा नहीं सकते।

मेरे नदीम मेरे हमसफर, उदास न हो।
कठिन सही तेरी मंज़िल, मगर उदास न हो।
- साहिर लुधियानवी
विषय:
आशा विश्वास (18)
उदासी (19)

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ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

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तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
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बेचैनियों का कभी
..

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प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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