अप्रतिम कविताएँ

तुम्हारा होना
ये रंग
जो तुम्हारी हंसी से
बिखरे पड़े हैं धरा पर
तुम्हारे प्रेम की ऊष्मा पाकर ही
वाष्पित हुए
और इंद्रधनुष हो गया सतरंगी

तुम्हारी खुशियों से ही
तय किये गए
धरती और आकाश की सम्पूर्णता के समीकरण,
अलसुबह
तुम्हारे चेहरे के नूर से ही
खिलते रहे फूल

जब नहीं रहोगी तुम
बेरंग हो जायेगी दुनियाँ
ख़त्म हो जायेंगी पृथ्वी पर
जीवन की सारी संभावनाएं |
- भानु प्रकाश रघुवंशी
वाष्पित= भाप बन जाना; समीकरण= equation इकवेशन

काव्यालय को प्राप्त: 31 Jan 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 11 Feb 2022

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इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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