अप्रतिम कविताएँ
समर्पण
तर्जनी
एक अहंकारी उँगली
जब उठती है
तो लगाती है लांछन
या फैलाती है दहशत
पर जब झुक कर
हो जाती है समर्पित
अँगूठे पर
तो बन जाती है मूरत
ज्ञान की, सम्मान की।

मध्यमा
एक सांसारिक उँगली
जब उठती है
तो उड़ाती है उपहास या
दर्शाती है परिहास
पर जब झुक कर
हो जाती है समर्पित
अँगूठे पर
तो बन जाती है मूरत
ध्यान की, वरदान की।

अनामिका
एक अनुरागी उँगली
जब उठती है तो
झुकती हैं पलकें प्रेयसी की
और बनती सेतु दो सत्वो का
पर जब झुक कर होती है
समर्पित अँगूठे पर
तो बन जाती है मूरत
उत्थान की, निर्वाण की।

कनिष्ठा
एक छोटी सी उँगली
जिसके उठने से या
न उठने से
नहीं फ़र्क़ पड़ता
हवन में या अनुष्ठान में
पर जब झुक कर होती है
समर्पित अँगूठे पर
तो बन जाती है मूरत
संज्ञान लिए विद्वान की।

आदमी
मुकुट धारी या भिखारी
भयभीत या दमनकारी
जब भी झुक कर
होता है समर्पित
प्रभु के चरणों में
तो बन जाता है मूरत
इंसान की या भगवान की।
- अजेय रतन

काव्यालय को प्राप्त: 1 Mar 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 12 Mar 2021

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'जो हवा में है'
उमाशंकर तिवारी


जो हवा में है, लहर में है
क्यों नहीं वह बात
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शाम कंधों पर लिए अपने
ज़िन्दगी के रू-ब-रू चलना
रोशनी का हमसफ़र होना
उम्र की कन्दील का जलना
आग जो
जलते सफ़र में ...
..

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इस महीने :
'दिव्य'
गेटे


अनुवाद ~ प्रियदर्शन

नेक बने मनुष्य
उदार और भला;
क्योंकि यही एक चीज़ है
जो उसे अलग करती है
उन सभी जीवित प्राणियों से
जिन्हें हम जानते हैं।

स्वागत है अपनी...

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

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