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प्रेम
किसी चट्टान की
खुरदुरी सतह पर उभरी
किसी दरार पर
हौले से अपना हाथ यूँ रखो
मानो पूछ रहे हो
उससे उसकी खैरियत।
तुम देखना
कुछ समय बाद
वहाँ कोई कोंपल फूट गई होगी
अथवा
उस दरार में
पानी के निशान होंगे।
-
सुरेश बरनवाल
[email protected]
विषय:
प्रेम (60)
काव्यालय को प्राप्त: 18 Jun 2018. काव्यालय पर प्रकाशित: 26 Jul 2019
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'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष
जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते
हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
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जो छाता है
उसमें
..
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कभी-कभी लगता है
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केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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..
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