अप्रतिम कविताएँ
पेड़

हिन्दी अनुवाद

मैं शायद कभी न देखूँगा,
एक पेड़ सी सुन्दर कविता।

पेड़, जिसके वह भूखे होंठ,
वसुधा स्तन-धारा पे हैं लोट।

पेड़, जिसका रुख ईश्वर ओर,
पल्लवित भुजाएं विनय विभोर।

जो पेड़ गरमी में पहने हो,
अलकों में घोंसले इक या दो।

छाती पर हिम चादर ओढ़े,
वर्षा में अन्तरंग डोले।

मुझ से अज्ञानी पद रच लें,
पेड़ रचना ईश्वर ही सकें।


अंग्रेज़ी मूल

I think that I shall never see
A poem lovely as a tree.

A tree whose hungry mouth is prest
Against the earth’s sweet flowing breast;

A tree that looks at God all day,
And lifts her leafy arms to pray;

A tree that may in Summer wear
A nest of robins in her hair;

Upon whose bosom snow has lain;
Who intimately lives with rain.

Poems are made by fools like me,
But only God can make a tree.


- जोएस किलमर
- अनुवाद : वाणी मुरारका

काव्यालय को प्राप्त: 13 Dec 2017. काव्यालय पर प्रकाशित: 22 Jan 2021

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इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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