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पावस गीत
पुल बारिश का!
बिना ओढ़नी हवा घूमती
सबने देखा
पुल बारिश का!
मेघों से धरती तक
धानखेती सीढ़ियाँ,
मिट्टी में उग रहीं
नई हरी पीढ़ियाँ,
उड़ती हुई नदी पर
बनती मिटती नौका,
पुल बारिश का!
बूँदों के तीर सहते
पत्तों के नर्म सीने,
पानी के फूल बिखरे
जंगल में कौन बीने,
दिखते छुपते वृक्ष हैं
सचमुच या धोखा?
पुल बारिश का!
छत, मकान,गली,शहर,
सड़कों पर चलते,
चित्र में जड़े लोग
धुएं-से पिघलते,
बरस रहा जादू ये
किसका है किसका?
पुल बारिश का!
-
प्रभात कुमार त्यागी
पुल बारिश का : इन्द्रधनुष; धान खेती सीढियां : पहाड़ों पर खेती की सीढ़ियां
काव्यालय को प्राप्त: 26 Aug 2023. काव्यालय पर प्रकाशित: 8 Sep 2023
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'अन्त'
दिव्या ओंकारी ’गरिमा’
झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।
झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।
तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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