“चलते चलते रुककर किसी गिरते हुए पत्ते को देखकर, अलसाई दोपहर में किसी गिलहरी को फुदकते देखकर, सांझ के रंगों में आसमान में ढलते चित्रों को देखकर महसूस होता है कि सांसे लेना मात्र जीवन नहीं है। जीवन अनुभूति है पल-पल की, आती-जाती हर श्वास की, ईश्वर द्वारा प्रदत्त कण कण से तादात्म्य बिठा उसे महसूसने की। प्रकृति के वरदान को जीने की। जीवन जीने के इस मार्ग में मधुर-तिक्त अनुभव उन्हें कागज़ पर उड़ेलने को विवश करते हैं और कभी छोटे आकार में कविता बन जाते हैं तो कभी बृहद् आकार पा कहानी बन जाते हैं... बस यही है मेरा लेखन, मेरी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति, अनायास, अनगढ़!”
कहानी, आलेख, लघुकथा, कविता औऱ हाइकु में अपने भावों को व्यक्त करने वाली भावना सक्सैना को समाज के दोगलेपन व आडंबर से चिढ़ है। वह मानवी रिश्तों को सबसे ऊपर मानती हैं और अपनी एक कहानी के माध्यम से कहती हैं जो मेरे कारण मुस्कुरा पाएँ या जिनके कारण मैं मुस्कुरा पाऊँ वहीं हैं मेरा परिवार (एक उधार बाकी है)।
इनकी रचनाएं भाषा, गवेषणा, गगनाञ्चल, लैंग्वेज डिस्कोर्स, प्रवासी भारतीय, विश्व हिन्दी पत्रिका, पुरवाई, हिंदी चेतना, गर्भनाल, समाज कल्याण, लाइफ पॉजिटिव, राजभाषा मंजूषा, कादंबिनी, प्रवासी टुडे, अभिनव इमरोज़, उदंती, नेवा जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान पा चुकी हैं और अंतर्जाल पर – अभिव्यक्ति, अनुभूति, हिंदी हाइकु, वैबदुनिया, सहज साहित्य, त्रिवेणी, सृजनगाथा, विश्वगाथा, नई दुनिया, हिंदयुग्म पर पढ़ी जा सकती हैं।
संप्रति केंद्र सरकार के राजभाषा विभाग में कार्यरत हैं व विदेश मंत्रालय की ओर से सूरीनाम में प्रतिनियुक्त रह साढ़े तीन वर्ष हिंदी का प्रचार-प्रसार व सेवा कर चुकी हैं। एक शोधात्मक पुस्तक सूरीनाम में हिंदुस्तानी भाषा, साहित्य व संस्कृति और कहानी संकलन नीली तितली प्रकाशित हैं।
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