अप्रतिम कविताएँ
मौन होने दो
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥

दीप जीवन का सजा है चाँदनी बन
ताप के अहसास को कुछ सघन होने दो।
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥

अधर की मुस्कान आँखों की चमक को
सपन सा सुकुमार कोई बीज बोने दो।
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥

प्रभाती आनन्द, मोती हास, नूपुर,
ज़िन्दगी के हार में जम के पिरोने दो।
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥

कड़कती बिजली, बरसती बादरी को,
शौर्य के संगान से अवसाद खोने दो।
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥
- समणी सत्यप्रज्ञा
Samani Satyapragya
Email : [email protected]
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झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।

झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।

तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..

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