अप्रतिम कविताएँ
मौन होने दो
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥

दीप जीवन का सजा है चाँदनी बन
ताप के अहसास को कुछ सघन होने दो।
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥

अधर की मुस्कान आँखों की चमक को
सपन सा सुकुमार कोई बीज बोने दो।
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥

प्रभाती आनन्द, मोती हास, नूपुर,
ज़िन्दगी के हार में जम के पिरोने दो।
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥

कड़कती बिजली, बरसती बादरी को,
शौर्य के संगान से अवसाद खोने दो।
शब्द के संसार को अब मौन होने दो॥
- समणी सत्यप्रज्ञा
Samani Satyapragya
Email : india_dream@india.com
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विषय:
चुप्पी (7)

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इस महीने :
'पेड़ों का अंतर्मन'
हेमंत देवलेकर


कल मानसून की पहली बरसात हुई
और आज यह दरवाज़ा
ख़ुशी से फूल गया है

खिड़की दरवाज़े महज़ लकड़ी नहीं
विस्थापित जंगल होते हैं

मुझे लगा, मैं पेड़ों के बीच से आता-जाता हूँ
टहनियों पर ...
..

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इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

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इस महीने :
'एक मनःस्थिति '
शान्ति मेहरोत्रा


कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
मेरी गरम साँसों से पिघल कर
मोम-सी बह गई हैं।

केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

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इस महीने :
'खिलौने की चाबी'
नूपुर अशोक


इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी
कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
..

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