अप्रतिम कविताएँ
खिलौना
बीच बाज़ार
खिलौने वाले
के खिलौने
की आवाज़ से
आकर्षित हो
कदम उसकी
तरफ बढ़े,
मैंने छुआ,
सहलाया उन्हें
व एक खिलौने
को अंक में भरा
कि पीछे से कर्कष
आवाज़ ने मुझे
झंझोड़ा
‘‘तुम्हारी बच्चों की सी
हरकतें कब खत्म होंगी!’’
सुनकर मेरा नन्हा बच्चा
सहम सा गया
मेरी प्रौढ़ देह के अन्दर।
- शबनम शर्मा
Email: [email protected]

काव्यालय को प्राप्त: 5 Nov 2016. काव्यालय पर प्रकाशित: 20 Jul 2017

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इस महीने :
'उऋण रहें'
अज्ञात


बन्धनों से बांधता है ऋणदाता,
यम है वह !

चुका नहीं पाता
पर लेता हूँ ऋण उससे,
फिर-फिर अपमानजनक
ऋण उससे !

..

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इस महीने :
'कौन'
अज्ञात


कौन एकाकी विचरता?
कौन फिर-फिर जन्मता है?
शीत की औषधि भला क्या ?
बीज-रोपण के लिये, बोलो,
वृहत आधार क्या है?
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इस महीने :
'त्र्यम्बक प्रभु को भजें'
अज्ञात


त्र्यम्बक प्रभु को भजे निरन्तर !
जीवन में सुगन्ध भरते प्रभु,
करते पुष्ट देह, अभ्यन्तर !

लता-बन्ध से टूटे, छूटे खरबूजे से
जब हम टूटें, जब हम छूटें मृत्यु-बन्ध से,
पृथक न हों प्रभु के अमृत से !
..

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इस महीने :
'पावन कर दो'
अज्ञात


कवि! मेरा मन पावन कर दो!

हे! रसधार
बहाने वाले,
हे! आनन्द
लुटाने वाले,
..

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इन दर्पणों में देखा तो
~ वाणी मुरारका

वर्षों पहले यहाँ कुछ लोग रहते थे। उन्होंने कुछ कृतियां रचीं, जिन्हें 'वेद' कहते हैं। वेद हमारी धरोहर हैं, पर उनके विषय में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानती हूँ। जो जानती हूँ वह शून्य के बराबर है।

फिर एक व्यक्ति ने, अमृत खरे ने, मेरे सामने कुछ दर्पण खड़े कर दिए। उन दर्पणों में वेद की कृतियाँ एक अलग रूप में दिखती हैं, जिसे ग्रहण कर सकती हूँ, जो अपने में सरस और कोमल हैं। पर उससे भी महत्वपूर्ण, अमृत खरे ने जो दर्पण खड़े किए हैं उनमें मैं उन लोगों को देख सकती हूँ जो कोटि-कोटि वर्षों पहले यहाँ रहा करते थे। ये दर्पण वेद की ऋचाओं के काव्यानुवाद हैं, और इनका संकलन है 'श्रुतिछंदा'।

"श्रुतिछंदा" में मुझे दिखती है ...

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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