खामोशी बहना चाहती थी
मैं नदी बन गई
खामोशी उड़ना चाहती थी
मैं हवा बन गई
खामोशी अब खेलना चाहती है
मैंने उसे शब्द थमा दिए
वह बोलना भी चाहती है
मैंने एक कलम पकड़ा दी
अब वह हंसना और रोना चाहती है
खामोशी कविता में ढल गई।
लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
दे दिया संसार सोने का सहज
जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!