अप्रतिम कविताएँ
खामोशी बोल उठी
खामोशी बहना चाहती थी
मैं नदी बन गई
खामोशी उड़ना चाहती थी
मैं हवा बन गई
खामोशी अब खेलना चाहती है
मैंने उसे शब्द थमा दिए
वह बोलना भी चाहती है
मैंने एक कलम पकड़ा दी
अब वह हंसना और रोना चाहती है
खामोशी कविता में ढल गई।
- पूनम चन्द्रलेखा
विषय:
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चुप्पी (7)

काव्यालय को प्राप्त: 29 Sep 2019. काव्यालय पर प्रकाशित: 31 Jan 2020

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..

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धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

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