अप्रतिम कविताएँ
कालिदास
कालिदास! सच-सच बतलाना
इन्दुमती के मृत्युशोक से
अज रोया या तुम रोये थे ?
कालिदास! सच-सच बतलाना |
शिवजी की तीसरी आँख से,
निकली हुई महाज्वाला में,
घृतमिश्रित सूखी समिधा-सम
कामदेव जब भस्म हो गया,
रति का क्रंदन सुन आँसू से
तुमने ही तो दृग धोये थे -
कालिदास! सच-सच बतलाना
रति रोयी या तुम रोये थे ?

वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घन-घटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा,
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा,
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़नेवाले -
कालिदास! सच-सच बतलाना
पर पीड़ा से पूर-पूर हो
थक-थक कर औ चूर-चूर हो
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर
प्रियवर! तुम कब तक सोये थे?
रोया यक्ष कि तुम रोये थे?
कालिदास! सच-सच बतलाना |
- नागार्जुन
विषय:
सृजन (7)
कवि (6)

काव्यालय पर प्रकाशित: 3 Jun 2016

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अन्य राशि
इस महीने :
'एक आशीर्वाद'
दुष्यन्त कुमार


जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
..

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इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

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इस महीने :
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आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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