अप्रतिम कविताएँ
जब नींद नहीं आती होगी!
क्या तुम भी सुधि से थके प्राण ले-लेकर अकुलाती होगी!
                       जब नींद नहीं आती होगी!
दिनभर के कार्य-भार से थक जाता होगा जूही-सा तन,
श्रम से कुम्हला जाता होगा मृदु कोकाबेली-सा आनन।
लेकर तन-मन की श्रांति पड़ी होगी जब शय्या पर चंचल,
किस मर्म-वेदना से क्रंदन करता होगा प्रति रोम विकल
आँखों के अम्बर से धीरे-से ओस ढुलक जाती होगी!
                       जब नींद नहीं आती होगी!
जैसे घर में दीपक न जले ले वैसा अंधकार तन में,
अमराई में बोले न पिकी ले वैसा सूनापन मन में,
साथी की डूब रही नौका जो खड़ा देखता हो तट पर -
उसकी-सी लिये विवशता तुम रह-रह जलती होगी कातर।
तुम जाग रही होगी पर जैसे दुनिया सो जाती होगी!
                       जब नींद नहीं आती होगी!
हो छलक उठी निर्जन में काली रात अवश ज्यों अनजाने,
छाया होगा वैसा ही भयकारी उजड़ापन सिरहाने,
जीवन का सपना टूट गया - छूटा अरमानों का सहचर,
अब शेष नहीं होगी प्राणों की क्षुब्ध रुलाई जीवन भर!
क्यों सोच यही तुम चिंताकुल अपने से भय खाती होगी?
                       जब नींद नहीं आती होगी!
- रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'

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अनुवाद ~ प्रियदर्शन

नेक बने मनुष्य
उदार और भला;
क्योंकि यही एक चीज़ है
जो उसे अलग करती है
उन सभी जीवित प्राणियों से
जिन्हें हम जानते हैं।

स्वागत है अपनी...

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होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

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राष्ट्र वसन्त
रामदयाल पाण्डेय

पिकी पुकारती रही, पुकारते धरा-गगन;
मगर कहीं रुके नहीं वसन्त के चपल चरण।

असंख्य काँपते नयन लिये विपिन हुआ विकल;
असंख्य बाहु हैं विकल, कि प्राण हैं रहे मचल;
असंख्य कंठ खोलकर 'कुहू कुहू' पुकारती;
वियोगिनी वसन्त की...

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