अप्रतिम कविताएँ
जब पेड़ उखड़ता है
जंगल से गुजरते हुए उसने
ओक के पेड़ की पत्तियों को चूमा
जैसे अपनी माँ की हथेलियों को चूमा
कहा - यह मेरी माँ का हाथ पकड़कर बड़ा हुआ है
इसके पास आज भी उसका स्पर्श है
जंगल का हाथ पकड़कर
मेरे पुरखे भी बड़े हुए
वे नहीं हैं पर यह आज भी वहीं खड़ा है
इसने मेरे पुरखों की स्मृतियों
और स्पर्शों को बचाकर रखा है
उन्हें महसूस करने के लिए
मैं इन्हें छूता हूँ, चूमता हूँ
मैं इनसे प्यार करता हूँ

जानती हो?
एक पेड़ के उखड़ने से
वह एक बार उखड़ता है
पर उससे जुड़ा आदमी
दो बार उखड़ता है
एक बार अपनी ज़मीन से उखड़ता है
और दूसरी बार अपनों की
स्मृतियों के स्पर्श से उजड़ता है ।
- जसिन्ता केरकेट्टा
जसिन्ता केरकेट्टा की कविता संग्रह 'प्रेम में पेड़ होना' (राजकमल प्रकाशन) से
विषय:
प्रकृति (41)
पेड़ (6)

काव्यालय को प्राप्त: 26 Oct 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 14 Jun 2024

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
इस महीने :
'सबसे ताक़तवर'
आशीष क़ुरैशी ‘माहिद’


जब आप कुछ नहीं कर सकते
तो कर सकते हैं वो
जो सबसे ताक़तवर है

तूफ़ान का धागा
दरिया का तिनका
दूर पहाड़ पर जलता दिया

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'हादसे के बाद की दीपावली'
गीता दूबे


रौशनी से नहाए इस शहर में
खुशियों की लड़ियाँ जगमगाती हैं
चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।

धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website