अप्रतिम कविताएँ
तुम नहीं हो?
है धुंधलका
हल्का हल्का
ठहरा ठहरा
पाँव पल का
मन हिंडोला डोलता है
मूक अश्रु पूछता है
तुम नहीं हो?

चासनी से
छन रहे हो
चाँदनी से
झर रहे हो
छुप रहे हो
छल रहे हो
बस तुम्ही-तुम
हर कहीं हो
तुम नहीं हो?

हो जो भीतर
क्यूँ न बाहर
बीच क्यूँ है
काली चादर
आस बे-पर
साँस बे-घर
शेष फिर भी
ढाई आखर
सब ग़लत बस
तुम सही हो
तुम नहीं हो?

जानते हो
जान-से हो
क्यूँ बने
अनजान से हो
दूरियों में
जल रहे हो
मुझमें पल-पल
ढल रहे हो
सोचते हो
के नहीं हो
पर यहीं हो

तुम यहीं हो
तुम यहीं हो
तुम यहीं हो!
- अंजु वर्मा
email: [email protected]

काव्यालय को प्राप्त: 7 May 2019. काव्यालय पर प्रकाशित: 6 Sep 2019

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इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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