हे प्रभु अब हिम्मत और विश्वास रख पाने का बल दो
काल  के  पंजों को  रोक जीवन का अमृत विमल दो 
भय  से  है  आक्रांत  मानव  लाश  ढोते थक गया है 
निर्भय  करो अपनी कृपा से मन में आशाएं प्रबल दो
इस  आपदा के  काल में  भी  लिप्त  हैं जो स्वार्थ में 
उनकी आंख  में पानी  मन  में  भावनायें  सजल दो 
माना  कि  मानव  भूल  कर बैठा है तुमको भूल कर 
किंतु  हमको  तात  हे  देकर  क्षमा  भक्ति अचल दो 
तुम  जो करोगे अच्छा ही होगा पूर्ण  हमें विश्वास  है 
जैसे तुम्हें लगता उचित वैसे इस मुश्किल का हल दो
सृष्टि   क्रंदन   कर  रही  बस  इक तुम्हारा आसरा है 
अश्रु  इसके पोंछ कर सुरभित  हंसी निर्मल नवल दो
					
		
					
			
		 
		
		
				
		
		
		
				
		
					काव्यालय को प्राप्त: 27 Apr 2021. 
							काव्यालय पर प्रकाशित: 7 May 2021