सच का दर्पण ही शिव-दर्शन 
शिव से ही कुछ सुन्दर उपजाओ
विष से अमृत बना
शूल से फूल खिला 
जीवन के हर पतझड़ को 
नव-वसंत सा महकाओ 
वसुधा के कण-कण तृण-तृण में 
सूरज चंदा नीलगगन में 
नदिया पर्वत और पवन में 
कोटि-कोटि जन के तन-मन में 
सिमटी उस विराट शक्ति को
मन-मंदिर में सदा बसाओ
शिव से ही कुछ सुन्दर उपजाओ 
कुंठाओं में मुस्कान भरो 
टूटी वीणा में तान भरो 
बन मलय पवन का झोंका 
टूटी साँसों में नवप्राण भरो 
कुछ पलकों पर बिखरे मोती चुन 
घावों का मरहम बन जाओ 
शिव से ही कुछ सुन्दर उपजाओ 
पल-पल बहती जीवन-धारा 
देती बूँद-बूँद अहसास 
रुकना मत गति ही जीवन
सिमटी है साँस-साँस में आस 
मत डूब निराशा-तम में 
आशाओं को जीवन-दीप बनाओ 
शिव से ही कुछ सुन्दर उपजाओ 
कहता  तेरा लक्ष्य निरन्तर 
बढ़ता जा तू अपने पथ पर 
चिन्तन में चैतन्य जगाकर 
जीवन में कुछ तो अद्भुत कर
पथ पर कुछ पद-चिह्न बनाकर 
काल-शिला पर कुछ लिख जाओ 
शिव से ही कुछ सुन्दर उपजाओ
					
		
					
			
		 
		
		
				
		
		
		
				
		
					काव्यालय को प्राप्त: 19 Aug 2017. 
							काव्यालय पर प्रकाशित: 6 Dec 2019