रात यदि श्याम नहीं आए थे
मैंने इतने गीत सुहाने किसके संग गाए थे?
गूँज रहा अब भी वंशी स्वर,
मुख-सम्मुख उड़ता पीताम्बर।
किसने फिर ये रास मनोहर
वन में रचवाये थे?
शंका क्यों रहने दें मन में
चल कर सखि देखें मधुवन में
पथ के काटों ने क्षण-क्षण में
आँचल उलझाए थे।
मुझे याद है हरि ने छिप कर
मुग्ध दृष्टि डाली थी मुझ पर
क्यों अंगों में सिहर रही भर
भेंट न यदि पाये थे।
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मिलाप दूगड़