नचारी को, मुक्तक काव्य के अन्तर्गत लोक-काव्य की श्रेणी में परिगणित किया जा सकता है। इसकी रचना में लोक-भाषा का प्रयोग और शैली में विनोद एवं व्यंजना पूर्ण उक्तियाँ रस को विलक्षण स्वरूप प्रदान कर मन का रंजन करती हैं। इनका लिखित स्वरूप सर्व प्रथम 'विद्यपति की पदावली' की पदावली में प्राप्त होता है। आराध्य के प्रति विनोद और व्यंग्य से पूर्ण, इन पदों में मुझे विलक्षण रस की अनुभूति हुई। इन 'नचारियों' के मूल में वही प्रेरणा रही है। |
नचारी
-
प्रतिभा सक्सेना
विषय:
![]()
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।
प्रतिभा सक्सेना
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ
इस महीने :
'छाता ' प्रेमरंजन अनिमेष
जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं वही रखते हैं छाते हर बार सोचता हूँ एक छत का जुगाड़ करुँगा और लूँगा एक छाता इस शहर के लोगों के पास जो छाता है उसमें .. पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'एक मनःस्थिति ' शान्ति मेहरोत्रा
कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें मेरी गरम साँसों से पिघल कर मोम-सी बह गई हैं। केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे कभी .. पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'खिलौने की चाबी' नूपुर अशोक
इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी कि माँ बन चुकी है एक खिलौना घूम रही है गोल-गोल .. पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना |
काव्य विभाग: शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु |
प्रतिध्वनि |
काव्य लेख सम्पर्क करें | हमारा परिचय सहयोग दें ![]() |