अप्रतिम कविताएँ
जुगलबन्दी
जब तंत्रियों पर फिसलती छुअन
नाभि पर नाचती मिज़राब से
अभिमंत्रित कर देती सितार को
भीतर का समूचा रीतापन
भर उठता है।
रेगिस्तानी सांपों की सरसराहटों
जंगली बासों की सीटियों
बिजली की चीत्कारों
सियारों की हुआ हुआ
तने रगड़ते हाथीयों के गरजने
भैंसों के सींग भिड़ने से
फूट पड़ता है सुरों का जंगली झरना

झरने का वेग
चेहरे पर सहेजते
बांध लेते हैं तबले
समूचे जंगल को
अपनी बांहों में
सुर पार करने लगती हैं पगडंडियां
विलम्बित पर चलती
द्रुत पर दौड़ती
तोड़े की टापों टटकारती
झाले में झनकने लगतीं हैं
हवा कुछ नीचे आ ठहर जाती है
आकाश भी झांकने लगता है

किसे नहीं चाहिए खुशी
अनख रीतेपन के भराव के लिये।
- रति सक्सेना
Rati Saxena
K.P. XI/624 Vaijayant
Chettikunnu, Medical College P.O.
Thiruvananthapuram 685011
Email : [email protected]
विषय:
कामुकता (5)

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इस महीने :
'तुम्हारे साथ रहकर'
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना


तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।

हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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