अप्रतिम कविताएँ
सीमा में संभावनाएँ
आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का विस्तार कभी?
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

कोंपल, बूटे, कलियाँ, डाली; ये सब कुछ आबाद रहे
तब ही आती है ख़ुशहाली जब मौसम आज़ाद रहे।
नभ में चहक नहीं भर सकता, पिंजरे का परिवार कभी
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

सीमा में जकड़े बिरवे की सहज सुगंध नदारद है।
जो तितली की बाँह पकड़ ले, वो मकरंद नदारद है।
नकली पेड़ों पर बरसा है, क्या बादल का प्यार कभी?
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

नज़रों को दौड़ाना सीखो, विस्तारों को मत छाँटो
घर में चहक भरी रखने को, चिड़िया के पर मत काटो।
पलकों में भर पाता है क्या, सूरज का उजियार कभी?
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।
- चिराग जैन
विषय:
विस्तार (13)

काव्यालय को प्राप्त: 1 Jul 2024. काव्यालय पर प्रकाशित: 28 Feb 2025

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चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।

धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

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