तुझे दरिया बुलाते हैं, 
बूँदों के हार लेकर।
तुझे अडिग पर्वत बुलाते हैं, 
हिम कणों का भार लेकर।
देख यायावर!  तू ठहरना नहीं, 
जब तलक वादियाँ मिल जाए न।
देख यायावर! तू ठहरना नहीं, 
जब तलक आँख अनिमेष ठहर जाए न।
देख छूती नभ में जलद को, 
देवदारु की पंक्तियाँ।
देख होती घाटियों में परिवर्तित, 
इन श्रृंखलाओं की विभक्तियाँ।
हो रही है निछावर, 
जहाँ प्रकृति जी जान से।
तृप्त हो जाता है हृदय, 
सुन निर्झर की मधु तान से।
देख यायावर! ये वही महान् हैं,
हिमालय की ये श्रृंखलाएँ, 
विश्व में बढा़ती शान हैं।
देख यायावर! ये दनुज सी लहरें, 
जाने तुझसे क्या कह रहीं।
अथाह जलराशि इन दरियाओं में, 
चिरकाल से है बह रहीं।
है समेटे हुए एक पूरा ही विश्व, 
यह अपने आप में।
रहस्यों की विविध गर्तें, 
ले रहा है अपने साथ में।
बैठकर इसके तट पर हे यायावर! 
करना मनन उस रचनाकार का।
किया अद्भुत ये ब्रह्मांड साकार, 
धन्यवाद देना उस निराकार का।
					
		
					
			
		 
		
		
				
			यायावर: अश्वमेध का घोड़ा, खानाबदोश, nomad; अनिमेष: अपलक; जलद: बादल; दनुज: दानव
		
				
		
				
		
					काव्यालय को प्राप्त: 1 Jul 2017. 
							काव्यालय पर प्रकाशित: 3 Aug 2017