अप्रतिम कविताएँ
अतीत
            याद किसी की गीत बन गई !

कितना अलबेला सा लगता था, मुझे तुम्‍हारा हर सपना
साकार बनाने से पहले , क्यों फेरा प्रयेसी मुख अपना
तुम थी कितनी दूर और मैं, नगरी के उस पार खङा था
अरुण कपोलों पर काली सी, दो अलकों का जाल पङा था
अब तुम ही अनचाहे मन से अंतर का संगीत बन गई ।

            याद किसी की गीत बन गई !

उस दिन हंसता चांद और तुम , झांक रही छत से मदमाती
आंख मिचौनी सी करती थीं, लट संभालती नयन घुमाती
कसे हुए अंगों में झीने, पट का बंधन भार हो उठा
और तुम्‍हारी पायल से, मुखरित मेरा संसार हो उठा
सचमुच वह चितवन तो मेरे, अंतर्तम का मीत बन गई ।

            याद किसी की गीत बन गई !

तुम ने जो कुछ दिया आज वह मेरा पंथ प्रवाह बना है
आज थके नयनों में पिघला, आंसू मन की दाह बना है
अब न शलभ की पुलक प्रतीक्षा, और न जलने की अभिलाषा
सांसों के बोझिल बंधन में, बंधी अधूरी सी परिभाषा
लेकिन यह तारों की तङपन, धङकन की चिर प्रीत बन गई ।

            याद किसी की गीत बन गई !
- महावीर शर्मा
Mahavir Sharma
email: mahavirpsharma at yahoo dot co dot uk
Mahavir Sharma
email: mahavirpsharma at yahoo dot co dot uk

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अनुवाद ~ प्रियदर्शन

नेक बने मनुष्य
उदार और भला;
क्योंकि यही एक चीज़ है
जो उसे अलग करती है
उन सभी जीवित प्राणियों से
जिन्हें हम जानते हैं।

स्वागत है अपनी...

..

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होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

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राष्ट्र वसन्त
रामदयाल पाण्डेय

पिकी पुकारती रही, पुकारते धरा-गगन;
मगर कहीं रुके नहीं वसन्त के चपल चरण।

असंख्य काँपते नयन लिये विपिन हुआ विकल;
असंख्य बाहु हैं विकल, कि प्राण हैं रहे मचल;
असंख्य कंठ खोलकर 'कुहू कुहू' पुकारती;
वियोगिनी वसन्त की...

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