अप्रतिम कविताएँ
एक भी आँसू न कर बेकार
एक भी आँसू न कर बेकार -
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
           पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है,
           यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है,
           और जिस के पास देने को न कुछ भी
           एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है,
कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाय!
           चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
           किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं,
           आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ -
           पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं,
हर छलकते अश्रु को कर प्यार -
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!
           व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की,
           काम अपने पाँव ही आते सफर में,
           वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा -
           जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में,
हर लहर का कर प्रणय स्वीकार -
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!
- रामावतार त्यागी

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अन्य राशि
इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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