अप्रतिम कविताएँ
एक भी आँसू न कर बेकार
एक भी आँसू न कर बेकार -
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
           पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है,
           यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है,
           और जिस के पास देने को न कुछ भी
           एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है,
कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाय!
           चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
           किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं,
           आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ -
           पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं,
हर छलकते अश्रु को कर प्यार -
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!
           व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की,
           काम अपने पाँव ही आते सफर में,
           वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा -
           जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में,
हर लहर का कर प्रणय स्वीकार -
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!
- रामावतार त्यागी
विषय:
जीवन (37)
आशा विश्वास (18)

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
इस महीने :
'नव ऊर्जा राग'
भावना सक्सैना


ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'दरवाजे में बचा वन'
गजेन्द्र सिंह


भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'पेड़ों का अंतर्मन'
हेमंत देवलेकर


कल मानसून की पहली बरसात हुई
और आज यह दरवाज़ा
ख़ुशी से फूल गया है

खिड़की दरवाज़े महज़ लकड़ी नहीं
विस्थापित जंगल होते हैं

मुझे लगा, मैं पेड़ों के बीच से आता-जाता हूँ
टहनियों पर ...
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website