अप्रतिम कविताएँ
आयी होली आयी
आयी होली आयी
बजने लगे
उमंग के साज
इन्द्रधनुषीय रंगों से
रंग दो
पिया आज

न भाए रंग
अबीर का
न सोहे
रंग गुलाल
नेह के रंगों से पिया
रंग दो
चुनरिया लाल

न जानूँ बात
सुरों की
है अनजानी
हर ताल
होली के मद में नाचूंगी
तुम संग
हो बेसुध बिन साज

बाट तुम्हारी
मैं जोहुंगी
नयन बिछाए
हर राह
भूल न जाना
बात मिलन की
आई होली आज
- दीपा जोशी
Deepa Joshi
Email : dineshdeepa <at> yahoo.com
Deepa Joshi
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विषय:
होली (7)

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जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

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जो छाता है
उसमें

..

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कभी-कभी लगता है
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केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

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..

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