अप्रतिम कविताएँ
आवाज़ें
एक पुरानी किताब के पन्नों पे आज उंगली चलाई
जाने कहाँ से कुछ धीमी आवाज़ें आई

आवाज़ एक जानी पहचानी सी
आवाज़ें कुछ बरसों पुरानी सी

एक हँसी थी दूर से आती हुई
गूंजती थी दिल को भरमाती हुई

कितनी ही बातें थी उस आवाज़ में
जाने क्या कह गई अपने ही अंदाज़ में

एक संगीत खामोशी की नींद तोड़ता हुआ
पुरानी ग़ज़लों का दुशाला ओढ़ता हुआ

कुछ सवाल उठे उचक कर ऐसे
नींद से कोई बच्चा जागता हो जैसे

बूढ़ी पंखुड़ियों से बुझी राख टटोल रहा था
उस किताब में दबा एक गुलाब बोल रहा था

मेरा हाथ पकड़ कर वो मुस्कुराने लगा
किन्ही बिछ्ड़े रास्तों पर ले जाने लगा

कुछ सोच कर मैंने उसका हाथ झटक दिया
किताब बंद कर उसका मुंह भी बंद कर दिया
- विकास कुमार 'सपन'
Vikas Kumar 'Sapan'
Email: hi_vikasagrawalyahoo.co.in
Vikas Kumar 'Sapan'
Email: hi_vikasagrawalyahoo.co.in

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इस महीने :
'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

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सूरज को, कच्ची नींद से
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दूध-मुँहे बालक-सा
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मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
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आदत बुरी है यह
..

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इन्दिरा किसलय


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जी उठे दृश्य
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