अप्रतिम कविताएँ
हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या?
हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?

तेरी चाह है सागरमथ भूधर,
उद्देश्य अमर पर पथ दुश्कर
             कपाल कालिक तू धारण कर
             बढ़ता चल फिर प्रशस्ति पथ पर
जो ध्येय निरन्तर हो सम्मुख
फिर अघन अनिल का कोइ हो रुख
             कर तू साहस, मत डर निर्झर
             है शक्त समर्थ तू बढ़ता चल
जो राह शिला अवरुद्ध करे
तू रक्त बहा और राह बना
             पथ को शोणित से रन्जित कर
             हर कन्टक को तू पुष्प बना
नश्वर काया की चिन्ता क्या?
हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?

है मृत्यु सत्य माना पाति
पर जन्म कदाचित महासत्य
             तुझे निपट अकेले चलना है
             हे नर मत डर तू भेद लक्ष्य
इस पथ पर राही चलने में
साथी की आशा क्यों निर्बल
             भर दम्भ कि तू है अजर अमर
             तेरा ध्येय तुझे देगा सम्बल
पथ भ्रमित न हो लम्बा पथ है
हर मोड खड़ा दावानल है
             चरितार्थ तू कर तुझमे बल है
             है दीर्घ वही जो हासिल है
बन्धक मत बन मोह पाशों का
ये मोह बलात रोकें प्रतिपल
             है द्वन्द्व समर में मगर ना रुक
             जो नेत्र तेरे हो जायें सजल
बहते अश्रु की चिन्ता क्या
हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?
- अमित कपूर
Amit Kapoor
Email : [email protected]
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गेटे


अनुवाद ~ प्रियदर्शन

नेक बने मनुष्य
उदार और भला;
क्योंकि यही एक चीज़ है
जो उसे अलग करती है
उन सभी जीवित प्राणियों से
जिन्हें हम जानते हैं।

स्वागत है अपनी...
अपनी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

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राष्ट्र वसन्त
रामदयाल पाण्डेय

पिकी पुकारती रही, पुकारते धरा-गगन;
मगर कहीं रुके नहीं वसन्त के चपल चरण।

असंख्य काँपते नयन लिये विपिन हुआ विकल;
असंख्य बाहु हैं विकल, कि प्राण हैं रहे मचल;
असंख्य कंठ खोलकर 'कुहू कुहू' पुकारती;
वियोगिनी वसन्त की...

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