hRday gagan ke sharad-sudhaakar,
bikharaa kar nij puNy-prakaash,
ur ambar ko ujjval kar do
kRpaa-kiraN phailaa kar aaj.
trividh taap santapt praaN ko,
sheetal sudhaa pilaa do aaj.
maanas-ur-men khile kumudinee,
madhur maalatee mahak uThe.
man chakor tav darshan pyaase,
thakit vilochan, mRdu chitavan,
nirnimeSh tav roop nihaare,
rom-rom men ho pulakan.
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Rajkumari Nandan
शरद : वर्षा के बाद, ठंड के पहले की ऋतु; सुधाकर : चांद; उर : दिल ; त्रिविध ताप : तीन प्रकार के ताप, अर्थात सभी कष्ट; संतप्त : व्यथित; कुमुदिनी : कमल जैसा कमल से छोटा सफेद फूल; मालती : चाँदनी, एक प्रकार का फूल; विलोचन : नयन; मृदु : कोमल; चितवन : दृष्टि; निर्निमेष : अपलक
कविता साभार:
कविता कोश से
काव्यालय को प्राप्त: 1 Jan 1900.
काव्यालय पर प्रकाशित: 11 Oct 2019