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पृथ्वीराज रासो (अंश)
कवि परिचय - चन्द वरदाई:
बहुमुखी प्रतिभा के धनी, चन्द वरदाई आदिकाल के श्रेष्ठ कवि थे। उनका जीवन काल बारहवीं शताब्दी में था। एक उत्तम कवि होने के साथ, वह एक कुशल योद्धा और राजनायक भी थे। वह पृथ्वीराज चौहान के अभिन्न मित्र थे। उनका रचित महाकाव्य "पृथ्वीराज रासो" हिन्दी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है। इस महाकाव्य में ६९ खण्ड हैं और इसकी गणना हिन्दी के महान ग्रन्थों में की जाती है। चन्द वरदाई के काव्य की भाषा पिंगल थी जो कालान्तर में बृज भाषा के रूप में विकसित हुई। उनके काव्य में चरित्र चित्रण के साथ वीर रस और श्रृंगार रस का मोहक समन्वय है। पृथ्वीराज रासो के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं।

पृथ्वीराज रासो (अंश)

      पद्मसेन कूँवर सुघर ताघर नारि सुजान।
      ता उर इक पुत्री प्रकट, मनहुँ कला ससभान॥

      मनहुँ कला ससभान कला सोलह सो बन्निय।
      बाल वैस, ससि ता समीप अम्रित रस पिन्निय॥

      बिगसि कमल-स्रिग, भ्रमर, बेनु, खंजन, म्रिग लुट्टिय।
      हीर, कीर, अरु बिंब मोति, नष सिष अहि घुट्टिय॥

छप्पति गयंद हरि हंस गति, बिह बनाय संचै सँचिय।
पदमिनिय रूप पद्मावतिय, मनहुँ काम-कामिनि रचिय॥

      मनहुँ काम-कामिनि रचिय, रचिय रूप की रास।
      पसु पंछी मृग मोहिनी, सुर नर, मुनियर पास॥

      सामुद्रिक लच्छिन सकल, चौंसठि कला सुजान।
      जानि चतुर्दस अंग खट, रति बसंत परमान॥

      सषियन संग खेलत फिरत, महलनि बग्ग निवास।
      कीर इक्क दिष्षिय नयन, तब मन भयो हुलास॥

      मन अति भयौ हुलास, बिगसि जनु कोक किरन-रबि।
      अरुन अधर तिय सुघर, बिंबफल जानि कीर छबि॥

      यह चाहत चष चकित, उह जु तक्किय झरंप्पि झर।
      चंचु चहुट्टिय लोभ, लियो तब गहित अप्प कर॥

हरषत अनंद मन मँह हुलस, लै जु महल भीतर गइय।
पंजर अनूप नग मनि जटित, सो तिहि मँह रष्षत भइय॥

      तिहि महल रष्षत भइय, गइय खेल सब भुल्ल।
      चित्त चहुँट्टयो कीर सों, राम पढ़ावत फुल्ल॥

      कीर कुंवरि तन निरषि दिषि, नष सिष लौं यह रूप।
      करता करी बनाय कै, यह पद्मिनी सरूप॥

      कुट्टिल केस सुदेस पोहप रचयित पिक्क सद।
      कमल-गंध, वय-संध, हंसगति चलत मंद मंद॥

      सेत वस्त्र सोहे सरीर, नष स्वाति बूँद जस।
      भमर-भमहिं भुल्लहिं सुभाव मकरंद वास रस॥

नैनन निरषि सुष पाय सुक, यह सुदिन्न मूरति रचिय।
उमा प्रसाद हर हेरियत, मिलहि राज प्रथिराज जिय॥
- चन्द वरदाई
Ref: Swantah Sukhaaya
Pub: National Publishing House, 23 Dariyagunj, New Delhi - 110002

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'बेकली महसूस हो तो'
विनोद तिवारी

बेकली महसूस हो तो गुनगुना कर देखिये।
दर्द जब हद से बढ़े तब मुस्कुरा कर देखिये।

रूठते हैं लोग बस मनुहार पाने के लिए
लौट आएगा, उसे फिर से बुला कर देखिये।

आपकी ही याद में शायद वह हो खोया हुआ
पास ही होगा कहीं, आवाज़ देकर देखिये।

हारती है बस मोहब्बत ही ख़ुदी के खेल में
हार कर अपनी ख़ुदी, उसको...

पूरी ग़ज़ल यहां पढ़ें
This Month :
'Pukaar'
Anita Nihalani


koee kathaa anakahee n rahe
vyathaa koee anasunee n rahe,
jisane kahanaa-sunanaa chaahaa
vaaNee usakee mukhar ho rahe!

ek prashn jo soyaa bheetar
ek jashn bhee khoyaa bheetar,
jisane use jagaanaa chaahaa
..

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